आज बची जो शेष पीढ़ियां वो इतिहास कहेंगी ही।

आज बची जो शेष पीढ़ियां वो इतिहास कहेंगी ही।


आक्रांता के झंझावातों का कुछ तो आभास करेंगी ही।


कैसे भूलें उस अतीत को जो खुद को दोहराता है।


कल का कासिम अब कसाब बन दिल्ली को दहलाता है।


दक्षिण में तो बचे रहे उत्तर देवालय कहां गए


मुगलों का गौरव ताज महल पर तेज महालय कहां गए


प्रतिमानों की क्षति हुई अब स्वयं मूर्तियां बोलेंगी


अत्याचारी आक्रांताओं के राज़ सभी ये खोलेंगी


बदन बाहु और चरण उठेंगे अथक क्षितिज तक जाने को


कुलघाती तैयार रहें करनी का फल पाने को


शरण वत्सला भारत भूमि यहां शरण की कमी नहीं


स्वयं चयन के योग्य बनो तो स्वतः चयन की कमी नहीं


जिनको भी पर शरण चाहिए शरणागति स्वीकार करें


इस मिट्टी से तिलक करे इस धरती को प्यार करें


आर्जूनेय की निर्मम हत्या पर हे कर्ण कहां थे तुम?


द्रौपदियों के चीर हरण पर रक्षक धर्म कहां थे तुम

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