ज्ञान के बीज
ज्ञान के वृक्ष नहीं
ज्ञान के बीज
बोए जाते हैं
जिज्ञासा साध्य नहीं
साधन है
अहंकारमय ज्ञान
विशुद्ध सापेक्ष है
यह ' साइंस ' सर्वदा
अल्पज्ञानी होने के कारण
अपेक्षा से अनंत
अनियंत्रित है
क्षितिज सर्वदा दूर है
और कुछ है भी नहीं
साइंस गागर में सागर
नहीं भर सकता
जिसकी वह कोशिश कर रहा है
या भविष्य में प्रयास अवश्य करेगा
साइंस
शैली बदल सकता है
सुख- दुःख को रोक नहीं सकता
जब तक कि वह
प्रत्येक मानव को
दूसरे मानव की
आवश्यकता से
मुक्त न कर दे
साइंस प्रकृति नहीं हो सकता
तब
क्या यह वही ज्ञान है
जिससे विनाश को
रोका जा सकता है
साइंस मनुष्य के
व्यसनों की
मजबूरी न बन जाए
यह अपना ही
विरोधी है
उसी कल्पना का
अवरोध करता है
जिससे इसकी
उत्पत्ति हुई
यह विश्वासघात
का परिणाम है
तर्क की चरम परिणति
यह उस जूते की तरह है
जिसके अभाव में
हममें से अधिकांश
टांगे होने पर भी
यात्रा नहीं कर सकते
साइंस पर पूरी
तरह से
निर्भर किसी व्यक्ति को
और एक प्राकृतिक व्यक्ति को
यदि एक निर्जन वन में
छोड़ दिया जाए
तो पूर्वोक्त व्यक्ति
पहले खत्म हो जाएगा
जिस जानकारी से
संतोष न हो
मद हो
अहंकार हो
आत्म- निर्भरता न हो
वह भला
ज्ञान कैसे हो सकता है।
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