जब अक्ल बंटेगी देश बंटेगा
जब अक्ल बंटेगी देश बंटेगा
वो गुल्ली डंडा खेलेंगे
उनकी करनी चुप रहने वाले
कितनी सदियों तक झेलेंगे।
सत्ता पाने को चाचा मामा
काका दादा बन जायेंगे
भेस बदल कर सोन चिंकारा
फ़िर मन ललचाने आयेंगे।
नक़ली सोने की चमक दिखाकर
छल लेंगे सीता माई को
फिर प्रजातंत्र को ओट बनाकर
ताना देंगे रघुराई को।
जिसने जीवन भर दुख ही झेला
कहलाएगा अपराधी
दानव दोषों को तय करने में
मानवता होगी बाधी
धर्मराज को धर्म सिखा कर
द्युत परंपरा में बदलेंगे
नृप पद को जागीर बताकर
राजगुरु का पद लेंगे
रणभीरू पासों के बल पर
खाण्डव वन भी जीतेंगे
पांडु पुत्रों के संवत् सारे
अज्ञातवास में बीतेंगे
पांचाली के वस्त्रहरण पर
पांडव धिक्कारा जाएगा
अंधे की संतान बताकर
दुर्योधन पुचकारा जाएगा
सूतपुत्र ही होने भर से
अपराध क्षमा हो जाएंगे
जो पाएंगे लाभ मात्र वो
कौरव का यश गाएंगे।
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