प्रार्थना

अम्बर के सारे तारे चरणांबुजों की धूलि


मेघ बन के छाए कुंतलों की आभा


अधरों की हर्ष मुद्रा तरनी को कर दे शीतल


नयनों में मग्न रहता गांभीर्य धारी सागर


प्रलयरूप भीषण कण कण में देखें पापी


अज्ञानी जन घटाएं कह कह के तेरी महिमा


मुझको भी सवारें वरद् हस्त रख शीश!

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