अर्जुन, मैं फिर कहता हूं!
समर क्षेत्र में मोह दिखाना दुर्बलता है माहात्म्य नहीं
अटल भाग्य बन रण समक्ष है शस्त्र गहो आध्यात्म नहीं
भूल गए क्या धर्मराज के तुष्टिकरण प्रयासों को
किंचित पश्चाताप नहीं है मनुज रुधिर के प्यासों को
यहीं इति हो क्षमादान की ईश्वर हूं पर चहता हूं
ये सखा तुम्हारा युद्ध टालने कितने लोगों के पास गया
सारा अभिमान मिटा डाला लेकर शान्ति की आस गया
सोचा था बस शान्ति बचे पांचाली को समझा लूंगा
पांच गांव देकर पांडव को रण संहार बचा लूंगा
अपमानित होती अनलसुता का दुःख प्रति पल मैं सहता हूं
बिना न्याय के शान्ति संधि है क्षणभंगुर एक युद्ध विराम
आगे की संतति भुगतेगी रण असमंजस का परिणाम
भरत पुत्र की प्रेम कथा पर प्रश्न उठाना ध्येय नहीं
हैं कुरुक्षेत्र में खड़े सभी इसमें क्या उनका श्रेय नहीं
वर्तमान में निर्णय लो, मैं वर्तमान में रहता हूं।
न्याय चक्र को रोक रहा जो, साधु है ना राजा है।
इन महाजनों के अपराधों का तुमको कुछ अंदाजा है?
बाल भीम हो गया लुप्त, क्या पूज्य पितामह सोए थे?
अग्निकांड का न्याय हुआ क्या? बंधु मगर सब रोए थे!
ये ज्ञानवान थे, सक्षम थे, बस यही सोचकर दहता हूं।
गंगासुत का पिता मोह यह देश दाव पर लगा गया
किस राष्ट्र के रक्षक थे ये, राष्ट्र सर्वदा ठगा गया
धर्मराज ही सभी दृष्टि से भारतभूमि के राजा थे
बहुत सुंदर। वास्तव में यही समय की आस है,... कि कर्तव्य पथ पर परिणाम को भूल कर आगे बढ़, कपटी मक्कारो को पदलित कर, परम पद की ओर मानव बढ़े।
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