बहुत समझाया कि वो दुश्मन है फिर भी ना समझे

बहुत समझाया कि वो दुश्मन है फिर भी ना समझे


जख्म सीने पर खा समझे तो क्या समझे?



इस तरह कत्ल होने की कोई उम्मीद न थी


इस आखरी हमले की भी होगी वजह समझे



अपने क़ातिल को किया माफ़ कि वो रोएगा


पर उसे इतनी थी नफरत कि वो कहां समझे



उसे अपना समझ मिटाए गुनाहों के सबूत


उसने मिटा ही दिया तुमको तब उसकी वफा समझे



तुम रोज़ बनाते रहे तिनकों का नशेमन


क्यूं रोज़ उजड़ जाता था वो आशियां समझे



तू कहता है काफ़िर तो पूछ अपने ख़ुदा से


तंग आकर वह भी हो गया काफ़िर ख़ुदा समझे


                                                     रचना : राम आयनिक







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