'Special Ops Review' रॉ के वास्तविक कारनामों से प्रेरित वेब- श्रृंखला Special Ops आपको रोमांच कि नई पराकाष्ठा तक ले जाती है।

****१/२ नक्षत्र

अगर अपने कृड़ान्त (endgame) देख ली है और आपको लगता है कि अब इससे रोमांचक कोई कहानी हो नहीं सकते, तो मैं मुंहफट होकर आपसे यही कहूंगा कि बड़े बजट वाली वह हॉलीवुड  चलचित्र इस जाल श्रृंखला के आगे तुच्छ है।

स्पेशल ऑप्स के सारे एपिसोड देखे। बस मुंह से एक ही शब्द निकल रहा है,  उम्दा। यदि आपको ऐसा लगता है कि सारे थ्रिलर आप देख चुके हैं, और अब देखने के लिए कुछ नहीं बचा है, तो इसे देखिए। अगर अपने कृड़ान्त (endgame) देख ली है और आपको लगता है कि अब इससे रोमांचक कोई कहानी हो नहीं सकते, तो मैं मुंहफट होकर आपसे यही कहूंगा कि बड़े बजट वाली वह हॉलीवुड  चलचित्र इस जाल श्रृंखला के आगे तुच्छ है। जाल श्रृंखलाओं एवम् धारा प्रसारण मंचों ने बहुत सारे लोगों के लिए छोटे पर्दे और बड़े पर्दे का अंतर पाट दिया है, और भविष्य में बचे हुए लोगों के लिए भी इनके द्वारा ये अंतर पूर्णतया समाप्त किए जाएंगे। उपग्रह दूरदर्शन के अवसान में अंतरजाल दूरदर्शन वही भूमिका निभाएगा  जो दूरदर्शन के पतन में उसने निभाई थी। इसमें आपको सब कुछ मिलेगा, संदेहपरक आख्यान शैली, अनिंद्य कथानक और अद्भुद चरित्रांकन।

जिन लोगों को लगता है कि भारतीय पटकथाएं मूर्ख द्वारा सुनाई कथा के समान होती हैं तो उन्हें इसे देखना चाहिए। जिन दर्शकों को टाइगर ज़िंदा है सरीखी फिल्में भी पसंद नहीं आतीं, और जो देशभक्ति के धोखे में तानाजी देख आए थे, वे इसे ज़रूर देखें। जिन्हें लगता है, कि सुपरमैन के अतिरिक्त महामानव कि कोई अवधारणा नहीं हो सकती, वे इसे देखें। जिन्हें लगता है कि जो शक्स एक व्यक्ति का पीछा करते हुए, एक अट्टालिका से दूसरे पर कूदता है, वही स्पाय है, वे इसे देखें। अगर आपने इस समालोचना को पूरा पढ़ा है तो कमेंट में आई रेड इट व्होल लिखकर बताएं। दर्शकों को भ्रान्ति है कि भारत के मुस्लिम समुदाय को ठेस पहुंचाए बिना आतंकवाद पर कोई धारावाहिक नहीं बनाया जा सकता, वे इससे बहुत कुछ सीख सकते है। हिम्मत सिंह दिल्ली में बैठकर रॉ के ऑपरेशन्स को जिस तरह अंजाम देता है, उसके आगे आप फ्युरी को भूल जाएंगे। यदि आपने केवल जैक रयान देखने के लिए Amazon Prime की सदस्यता ली है,और उसकी समय समाप्ति होने वाली है, तो उसे नवीनीकृत मत कराइए। पात्रों में हिम्मत सिंह, लेडी हिम्मत सिंह, फारूख और विनय पाठक के किरदार का नाम अभी विस्मृत हो गया हूं, प्रमुख और प्रभावशाली हैं।

यदि छिद्रानवेषण किया जाए तो रॉ के वांछितों को उठाने के तरीके में मुझे कुछ कमी दिखाई दी। इख्लाक़ खान को अपहृत करते समय शारीरिक शक्ति के प्रयोग के स्थान पर वसीम कराचीवाला के अपहरण के समय बाला द्वारा शारीरिक बल के स्थान पर औषधीय प्रशांतक का प्रयोग किया गया होता, तो बाला नामक एजेंट एवम् अर्थ संसाधन की हानि नहीं होती, और हिम्मत सिंह को मंत्री महोदया को पैसों के लिए ब्लैकमेल नहीं करना पड़ता। किन्तु एक्शन दृश्यों को दिखाने की भी कुछ छूट मिलनी चाहिए और भावनात्मक उलटफेर भी होना चाहिए। हां, फिल्मों के नामों का कड़ियों से सही प्रकार तालमेल बिठाने में मेरी औसत बुद्धि विफल रही। यदि आप ये कर पाएं तो मुझे जरूर सूचित करें। लेख के पठन हेतु धन्यवाद। 

आपका राम आयनिक।

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